तुम से हर मुलाक़ात के बाद
मैं अपने नाम के साथ तुम्हारा नाम जोड़ने लगती हूँ,
और तब मैं, मैं नहीं
तुम-सी हो जाती हूँ।
जब-जब नज़रें मिलती हैं
तब तुम्हारे सीने पर सिर रखकर जब आँखें बंद कर लेती हूं,
तब मैं, मैं नहीं
तुम-सी हो जाती हूँ।
समंदर की लहरों के क़रीब जाकर
जब तुम्हें थोड़ा दूर से देखती हूँ और मुस्कुराता हुआ पाती हूँ
तब मैं, मैं नहीं
तुम-सी हो जाती हूँ।
तुम्हारा हाथ थामकर
जब जगमगाती बत्तियों को देखते हुए
अपने दिल की धड़कनें सुनती हूँ
तब मैं, मैं नहीं
तुम-सी हो जाती हूँ।
तुम्हारी सांसें जब मेरे कानों में घुलने लगती हैं
मैं थोड़ा सहम जाती हूँ
और तब मैं, मैं नहीं
तुम-सी हो जाती हूँ।
.. कामाक्षी दीवान
मैं हँसूँ या रोऊँ ,
चिल्लाऊँ या झल्लाऊँ
बस ठहर जाना।
मैं रूठ जाऊँ, तो मना लेना
कुछ कह देना , कुछ सुन लेना
बस ठहर जाना ।
मैं नीम-सी कड़वी हो जाऊँ
या छोटी बच्ची-सी अल्हड़ हो जाऊँ
बस ठहर जाना।
मैं पतंग-सी आसमान में उड़ने लगूँ ,
या कछुए-सी धीरे धीरे रेंगने लगूँ
तुम बस ठहर जाना।
मैं नदी-सी बहने लगूँ
या तालाब-सी शांत हो जाऊँ
बस ठहर जाना
तुम, बस ठहर जाना।
कामाक्षी दीवान